Sunday 18 October 2015

नानाजी का तोहफ़ा

पिछले रविवार को चुन्नु-मुन्नू बिट्टू के घर गए,
बिट्टू की साइकिल को देख उनके सपने भर गए,
चुन्नु मुन्नू से बोला, "देखो बिट्टू की साइकिल,
उस पर बैठा बिट्टू देखो लगता है एक एंजिल।"
मुन्नू फट से बोला, "बिट्टू हमको भी सैर कराओ,
अपनी नई साइकिल पर बिठाकर थोड़ी दूर घुमाओ,
मुझे और चुन्नु को थोड़ी देर चलाने दे दो",
बिट्टू बोला, "ना बाबा, मेरी साइकिल टूट गई तो?"
चुन्नु ने मुन्नू को एक इशारे से समझाया,
"नानाजी ने देख लिया है" हौले-से बतलाया।
नानाजी के साथ खेलते दोनों घर को आए,
घर पर नानाजी  ने उनके जन्मदिन बतलाए,
नानाजी बोले, "तुम्हारा जन्मदिवस कल ही है,
और तुम्हारे जन्मदिवस का तोहफा उस पल ही है।"
चुन्नु और मुन्नू खुशी से उछल कूद करने लगे,
क्या होगा नानाजी का तोहफ़ा इन्तजार करने लगे,
आया जन्म दिन चुन्नु-मुन्नू ने केक काटा,
सबसे पहले आकर केक नानाजी को बांटा,
बचा केक चुन्नु-मुन्नू बिट्टू खाने लगे,
इतनी देर में नानाजी उनका तोहफ़ा लाने लगे,
तोहफ़ा बड़ा- बड़ा सा था,
कुछ- कुछ खड़ा- खड़ा सा था,
नानाजी ने खींच के पन्नी फाड़ी एक ओर से,
त्यों ही चुन्नु-मुन्नू चिल्लाए बड़ी जोर से-
"देखो! बिट्टू लाए है नानाजी हमारी साइकिल,
प्यारे-प्यारे नानाजी ही है हमारे एंजिल।"