नानाजी के घर में पहली बार हुई
चुन्नु-मुन्नू के बीच में तकरार हुई
मुन्नू की गाड़ी लेकर चुन्नु दौड़ गया
फिर मुन्नू भी चुन्नु का घोड़ा तोड़ गया
दोनों के इस झगड़े से घर में छिड़ गया घमासान
कहीं गिरे बरतन, गुलदस्ते,
बिखरा घर, सारा सामान
बिखरी प्लेटें, बिखरे कप और गिरी घड़ी
नानाजी की चुन्नु-मुन्नू को दिखी छड़ी
नानाजी की छड़ी देख दोनों का मन घबराया
बिखरा था सामान फटाफट अपनी जगह जमाया
चुन्नु ने लगाई झाड़ू और मुन्नू ने लगाया पोंछा
कर दें पूरे घर की सफाई दोनों ने यह सोचा
नानाजी आए देखा घर कुछ बदला बदला था
चारों कोने चमक रहे थे
आँगन उजला उजला था
चुन्नु को पूछा नाना ने
किसने घर की
की ये सफाई?
मुन्नू ने नानाजी को उनकी
लम्बी छड़ी दिखाई
जादुई छड़ी का किस्सा जब मुन्नू ने उन्हें सुनाया
नानाजी ने बैठ पलंग पे एक ठहाका लगाया...
Saturday, 27 December 2014
नानाजी की छड़ी
Monday, 22 December 2014
नानाजी का पतंग शौक
चुन्नु-मुन्नू के नानाजी को,
पतंग उड़ाने का शौक लगा,
रंगीले पतंगों को देखा तो उनको ये बे-रोक लगा..!
नानाजी ने झुर्रीले हाथों में पतंग उठाई,
एक हवा के झोंके ने हाथों से छिटकाई,
नानाजी धीमे-धीमे पतंग के पीछे दौड़े,
पतंग गिरी छत के नीचे फिर भी ना पीछा छोड़े,
साँसे नानाजी की फूलने को थी आई,
निरी! पतंग लेकिन फिर भी हाथ नहीं लग पाई,
थककर नाना चूर हुए,
पतंग शौक से दूर हुए,
पतंग उड़ाने की उम्र अब मेरी तो है नहीं रही,
नानाजी ने रख दी चरखी मन में करके सोच यही,
पलंग पड़ा जो पास उसी पर नानाजी धर बैठे,
शौक छोड़, कर सीधे टाँग, मन मसोस कर लेटे,
नाना-नाना रटते चुन्नु-मुन्नू दौड़े आए,
आओ नाना! छत पर रंग- बिरंगी पतंग उड़ाए,
नानाजी को जबरन हाथ पकड़कर छत पर ले आए,
एक तिकौनी फर्रीदार पतंग को डोर से उड़वाए,
नानाजी ने चुन्नु-मुन्नू को चरखी पकड़ाई,
आसमान में ढील देकर सबसे ऊँची पंहुचाई,
एक टिमकी चुन्नु ने लगाई,
एक खींच मुन्नू ने लगाई,
वो-काटा वो-काटा कह नाना ने पतंग उड़ाई...!!