चुन्नु-मुन्नू के नानाजी को,
पतंग उड़ाने का शौक लगा,
रंगीले पतंगों को देखा तो उनको ये बे-रोक लगा..!
नानाजी ने झुर्रीले हाथों में पतंग उठाई,
एक हवा के झोंके ने हाथों से छिटकाई,
नानाजी धीमे-धीमे पतंग के पीछे दौड़े,
पतंग गिरी छत के नीचे फिर भी ना पीछा छोड़े,
साँसे नानाजी की फूलने को थी आई,
निरी! पतंग लेकिन फिर भी हाथ नहीं लग पाई,
थककर नाना चूर हुए,
पतंग शौक से दूर हुए,
पतंग उड़ाने की उम्र अब मेरी तो है नहीं रही,
नानाजी ने रख दी चरखी मन में करके सोच यही,
पलंग पड़ा जो पास उसी पर नानाजी धर बैठे,
शौक छोड़, कर सीधे टाँग, मन मसोस कर लेटे,
नाना-नाना रटते चुन्नु-मुन्नू दौड़े आए,
आओ नाना! छत पर रंग- बिरंगी पतंग उड़ाए,
नानाजी को जबरन हाथ पकड़कर छत पर ले आए,
एक तिकौनी फर्रीदार पतंग को डोर से उड़वाए,
नानाजी ने चुन्नु-मुन्नू को चरखी पकड़ाई,
आसमान में ढील देकर सबसे ऊँची पंहुचाई,
एक टिमकी चुन्नु ने लगाई,
एक खींच मुन्नू ने लगाई,
वो-काटा वो-काटा कह नाना ने पतंग उड़ाई...!!
Monday, 22 December 2014
नानाजी का पतंग शौक
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Nice poem Bhai
ReplyDeleteThankzz
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