पिछले रविवार को चुन्नु-मुन्नू बिट्टू के घर गए,
बिट्टू की साइकिल को देख उनके सपने भर गए,
चुन्नु मुन्नू से बोला, "देखो बिट्टू की साइकिल,
उस पर बैठा बिट्टू देखो लगता है एक एंजिल।"
मुन्नू फट से बोला, "बिट्टू हमको भी सैर कराओ,
अपनी नई साइकिल पर बिठाकर थोड़ी दूर घुमाओ,
मुझे और चुन्नु को थोड़ी देर चलाने दे दो",
बिट्टू बोला, "ना बाबा, मेरी साइकिल टूट गई तो?"
चुन्नु ने मुन्नू को एक इशारे से समझाया,
"नानाजी ने देख लिया है" हौले-से बतलाया।
नानाजी के साथ खेलते दोनों घर को आए,
घर पर नानाजी ने उनके जन्मदिन बतलाए,
नानाजी बोले, "तुम्हारा जन्मदिवस कल ही है,
और तुम्हारे जन्मदिवस का तोहफा उस पल ही है।"
चुन्नु और मुन्नू खुशी से उछल कूद करने लगे,
क्या होगा नानाजी का तोहफ़ा इन्तजार करने लगे,
आया जन्म दिन चुन्नु-मुन्नू ने केक काटा,
सबसे पहले आकर केक नानाजी को बांटा,
बचा केक चुन्नु-मुन्नू बिट्टू खाने लगे,
इतनी देर में नानाजी उनका तोहफ़ा लाने लगे,
तोहफ़ा बड़ा- बड़ा सा था,
कुछ- कुछ खड़ा- खड़ा सा था,
नानाजी ने खींच के पन्नी फाड़ी एक ओर से,
त्यों ही चुन्नु-मुन्नू चिल्लाए बड़ी जोर से-
"देखो! बिट्टू लाए है नानाजी हमारी साइकिल,
प्यारे-प्यारे नानाजी ही है हमारे एंजिल।"
Sunday, 18 October 2015
नानाजी का तोहफ़ा
Thursday, 30 July 2015
नानाजी की बागवानी
पड़ते ही चुन्नु-मुन्नू की नींद उड़ी,
चुन्नु और मुन्नू ने ली अंगड़ाई,
उठकर नानाजी की और दौड़ लगाई,
कमरे में जाकर देखा तो नानाजी वहाँ नहीं थे,
ना पूजाघर ना रसोई, नानाजी और कहीं थे,
चुन्नु-मुन्नू बाहर आए वहीं खड़े थे नानाजी,
चरण-स्पर्श करके बोले- " करते हो क्या जी- क्या जी?"
नानाजी बोले- "चुन्नु पहले वहाँ गड्डा खोदो,
और मुन्नू ये लो कुछ बीज उस खड्डे में बो दो,
बारिश के मौसम में पानी पाकर ये फूटेंगे,
डाली, कलियां लाकर फूल सुनहरे हमको देंगे...!"
चुन्नु और मुन्नू अचरज में करने लगे विचार,
कैसे देंगे इतने फूल ये बीज हमें दो- चार,
इतने में नानाजी बोले-"स्कूल नहीं जाना क्या?
नया पाठ मास्टरजी से पढ़कर नहीं आना क्या?"
चुन्नु- मुन्नू में फिर से हौड़ लगी,
स्कूल में जाने को घर में दौड़ लगी,
खेलकूद में चुन्नु-मुन्नू उन बीजों को बिसर गए,
दस-पंद्रह दिन बाद अचानक उनके पाँव ठहर गए,
देखा कि इतने दिन गए थे जिन बीजों को भूल,
उसी जगह खिल आए है नन्हें-नन्हें फूल,
चुन्नु नानाजी को हाथ पकड़ खींच के लाया,
कोमल-कोमल फूलों को जल्दी से दिखलाया,
नानाजी बोले,"इसे कहते हैं बागवानी",
चुन्नु-मुन्नू चिल्लाए,"फूलों की यहीं कहानी...!"
Monday, 8 June 2015
नानाजी का सॉरी
चुन्नु-मुन्नू बन ठन के पहली बार स्कूल चलें,
नानाजी की सारी बातें रख बस्ते में भूल चलें,
चुन्नु-मुन्नू ने कक्षा में जैसे ही पाँव ठोका,
एक मोटी आवाज ने उन दोनों को रोका,
दोनों सहमे, देखा तो मास्टरजी आ रहे,
हाथ में अपने एक मोटा डण्डा भी ला रहे,
मास्टरजी बोले बिन पूछे ही कहाँ चले आते हो,
स्कूल में पहले ही दिन क्यों इतनी देर लगाते हो,
चुन्नु और मुन्नू तो थर-थर करके थर्रा रहे,
दोनों ही को केवल तब नानाजी याद आ रहे,
नानाजी की सारी बातें बस्ते से निकल जाने लगी,
एक-एक करके चुन्नु-मुन्नू के सामने आने लगी,
नानाजी ने बोला था कि रोजाना जल्दी उठना,
तैयार होकर घर से रोज समय पर स्कूल निकलना,
जाते ही मां विद्या को शत-शत शीश नवाना,
फिर सारे गुरुजनों के जाकर धोक खाना,
कक्षा में जाने से पहले पूछ के अंदर जाना,
अपना सारा काम समय पर बिन गलती जँचवाना,
कोई गलती हो जाएँ तो झट 'सॉरी' कह देना,
फिर से ना करने की एक कसम भी खा लेना,
चुन्नु ने मुन्नू को एक चिकोटी काटी झट से,
मास्टरजी को दोनों ने 'सॉरी' बोला फट से,
फिर से ना करने भी सौगंध उन्होंने खाई,
नानाजी की 'सॉरी' उनको देर समझ में आई,
चुन्नु-मुन्नू बोले- 'अंदर आएँ क्या मास्टरजी...?'
मास्टरजी मुस्कुराते बोले- 'हाँजी..हाँजी...!!'