Thursday, 30 July 2015

नानाजी की बागवानी

सुबह-सुबह सूरज दादा की किरण पड़ी,
 पड़ते ही चुन्नु-मुन्नू की नींद उड़ी,
चुन्नु और मुन्नू ने ली अंगड़ाई,
उठकर नानाजी की और दौड़ लगाई,
कमरे में जाकर देखा तो नानाजी वहाँ नहीं थे,
ना पूजाघर ना रसोई, नानाजी और कहीं थे,
चुन्नु-मुन्नू बाहर आए वहीं खड़े थे नानाजी,
चरण-स्पर्श करके बोले- " करते हो क्या जी- क्या जी?"
नानाजी बोले- "चुन्नु पहले वहाँ गड्डा खोदो,
 और मुन्नू ये लो कुछ बीज उस खड्डे में बो दो,
बारिश के मौसम में पानी पाकर ये फूटेंगे,
 डाली, कलियां लाकर फूल सुनहरे हमको देंगे...!"
 चुन्नु और मुन्नू अचरज में करने लगे विचार,
कैसे देंगे इतने फूल ये बीज हमें दो- चार,
इतने में नानाजी बोले-"स्कूल नहीं जाना क्या?
 नया पाठ मास्टरजी से पढ़कर नहीं आना क्या?"
चुन्नु- मुन्नू में फिर से हौड़ लगी,
 स्कूल में जाने को घर में दौड़ लगी,
 खेलकूद में चुन्नु-मुन्नू उन बीजों को बिसर गए,
दस-पंद्रह दिन बाद अचानक उनके पाँव ठहर गए,
देखा कि इतने दिन गए थे जिन बीजों को भूल,
 उसी जगह खिल आए है नन्हें-नन्हें फूल,
 चुन्नु नानाजी को हाथ पकड़ खींच के लाया,
 कोमल-कोमल फूलों को जल्दी से दिखलाया,
 नानाजी बोले,"इसे कहते हैं बागवानी",
चुन्नु-मुन्नू चिल्लाए,"फूलों की यहीं कहानी...!"

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